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तद॒स्यानी॑कमु॒त चारु॒ नामा॑पी॒च्यं॑ वर्धते॒ नप्तु॑र॒पाम्। यमि॒न्धते॑ युव॒तयः॒ समि॒त्था हिर॑ण्यवर्णं घृ॒तमन्न॑मस्य॥

English Transliteration

tad asyānīkam uta cāru nāmāpīcyaṁ vardhate naptur apām | yam indhate yuvatayaḥ sam itthā hiraṇyavarṇaṁ ghṛtam annam asya ||

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Pad Path

तत्। अ॒स्य॒। अनी॑कम्। उ॒त। चारु॑। नाम॑। अ॒पी॒च्य॑म्। व॒र्ध॒ते॒। नप्तुः॑। अ॒पाम्। यम्। इ॒न्धते॑। यु॒व॒तयः॑। सम्। इ॒त्था। हिर॑ण्यऽवर्णम्। घृ॒तम्। अन्न॑म्। अ॒स्य॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:35» Mantra:11 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:24» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (अस्य) इस अग्नि का (चारु) सुन्दर (अनीकम्) सैन्य के समान तेज (उत) और (अपीच्यम्) अपने गुणों से निश्चित (नाम) आख्या अर्थात् कथन (अपाम्) प्राणों के (नप्तुः) पौत्र के समान वर्त्तमान व्यवहार से (वर्धते) बढ़ता है वा (यम्) जिसको (युवतयः) प्रबल यौवनवती स्त्री (इत्था) इस हेतु से (समिन्धते) अच्छे प्रकार प्रदीप्त करती हैं वा जो (हिरण्यवर्णम्) तेजोमय शोभनशुद्धस्वरूप (घृतम्) जल वा घी और (अन्नम्) अच्छा शोधा हुआ खाने योग्य अन्न (अस्य) इस अग्नि के सम्बन्ध में वर्त्तमान है, उसको तुम जानो ॥११॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे युवतिजन युवा पुरुष को प्राप्त होकर पुत्र और पौत्रों से बढ़ती है और जो अग्निविद्या को जानते हैं, वे धन धान्यों से बढ़ते हैं ॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यदस्य चार्वनीकमुतापीच्यं नामापां नप्तुर्वर्धते यं युवतय इत्था समिन्धते यद्धिरण्यवर्णं घृतमन्नं चास्य वर्तते तद् यूयं विजानीत ॥११॥

Word-Meaning: - (तत्) (अस्य) (अनीकम्) सैन्यमिव तेजः (उत) अपि (चारु) सुन्दरम् (नाम) आख्या (अपीच्यम्) स्वगुणैर्निश्चितम्। अपीच्यमिति निर्णयान्तर्हितनाम निघं० ३। २५। (वर्धते) (नप्तुः) पौत्रादिव वर्त्तमानात् (अपाम्) प्राणानाम् (यम्) (इन्धते) प्रदीपयन्ति (युवतयः) प्रौढयौवनाः (सम्) (इत्था) अनेन हेतुना (हिरण्यवर्णम्) तेजोमयं शोभनस्वरूपम् (घृतम्) उदकमाज्यं वा (अन्नम्) सुशोधितं भोक्तुमर्हम् (अस्य) ॥११॥
Connotation: - हे मनुष्या यथा युवतिर्युवानं प्राप्य पुत्रपौत्रैर्वर्धते तथा येऽग्निविद्यां जानन्ति ते धनधान्यैर्वर्धन्ते ॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! जशा तरुण स्त्रिया तरुण पुरुषांना स्वीकारून नातवंडांसह उन्नती करतात तसे जे अग्निविद्या जाणतात ते धनधान्याने समृद्ध होतात. ॥ ११ ॥